जब चेहरे की चमक, आँखों की खनक,
बिना बोले बहुत कुछ कहती है,
जब सोने सा निख़ार जीवन में,
और निराशा कोसों दूर सोती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?
जब इंतज़ार ख़तम हो काली रात,
एक भोर सुनहली देती है,
जब चमकती धूप की स्वर्णिम किरणें
बादल के छोर छू लेती हैं,
जब सागर में पानी की लहरें भी,
हर बूँद में सोना भर लेती हैं,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?
पग पग बढ़ते क़दमों से,
जब सूरज पहाड़ों को नहलाता,
फूलों पर ओस की बूंदों में,
जब सूरज का रँग चढ़ जाता,
प्रतिबिम्ब ख़ुशी का दिखता है,
जब फूलों पर भँवरा मँडराता,
घोंसले में धूप सेकती जब नन्ही चिड़िया सोती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?
जलती धूप में जब गरीब तन को,
एक चीर का टुकड़ा मिल जाता,
सिकी हुई धरती पर भी जब,
नंगे पैर दौड़ता बच्चा खिलखिलाता,
जब अभाव में भी चेहरे पर संतोष की आभा होती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?
किसान के खेतों में जब सोने सी फ़सल होती है,
खेतों में बहे पसीने से हसरत रोज़ नए मोती पिरोती है,
सबको खिलाने वाले की थाली में जब भरपेट रोटी होती है,
सूरज सी गरिमा जीवन में जब चहुँ ओर दिखाई देती है,
हाँ चमकती हुई मुस्कानों में शायद ख़ुशी सुनहरी होती है ।
Tripti Bisht