मेरे जीवन की धुरी हो,
पैरों के नीचे की ज़मीं हो,
जो ओढ़ा है हर पल सर पर मैंने,
मेरा वो कभी न ख़तम होने वाला आस्मां ही तो हो।
हाज़री की पत्तियों के रस में,
जो हर चोट पर लग जाता है,
रसीले आमों में या गुड़ के टुकड़ों में,
आपका ही चेहरा मुस्कुराता है।
बारिश से लड़ते डहेलिया के उन फूलों में,
ठण्ड में सगड़ के सुलगते कोयले और उड़ते धुएँ में,
टीन की छत के नीचे रखी हुई दराती और खुरपी में,
आड़ू और नीम्बू के वो लदे हुए पेड़ों में,
खेत में उग रही उन ताज़ी सब्जियों में,
कुछ और नज़र नहीं आता है,
चारों तरफ बस आपका अहसास मंडराता है।
हॉकी की स्टिक और खनकते मेडलों के गुच्छे में,
फुटबॉल के मैच में, १०० मीटर की रेस में, क्रिकेट के उस खेल में,
रोज़ की दिनचर्या लिखी डाईरियों में,
हर जगह हवा की तरह बह रहे हो निरंतर,
ऐसा कुछ भी तो नहीं जहाँ नहीं हो आप,
यूँ ही रहना मेरे पास युगों- युगांतर।
यूँ ही रहना मेरे पास युगों- युगांतर।
आज भी मेरी मुश्किलों का रास्ता हो,
निराशाओं के बीच मेरी उम्मीद हो,
हवाओं से हार ना मानने वाला,
"पा",आप ही तो मेरा वो टिमटिमाता नन्हा सा दीप हो।
Tripti Bisht