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क्या कभी समझेंगे हम?




सोचा था जल्द ही पानी को तरसेंगे हम,
पता नहीं था उस से पहले ही साँस लेने को हवा पड़ जाएगी ऐसे कम,
गुमाँ तो था मगर इतनी जल्दी वो वक्त आ जाएगा,
किसे पता था हर काटा गया पेड़ भी अटकती सॉंसों को देख यूँ अट्टहास लगाएगा।

वाईरस को सब कोस रहे, डर कर सहमें बैठे हैं अपने घरों में,
जो बेफिक्र उड़ते रहते थे, वो भी हैं अब पहरों में।
जँगल, नदियाँ, पहाड़... कुृछ भी तो नहीं छोड़ा हमने, हर जगह अपनी नाक घुसाई है,
बहुत कर लिया विध्वंस चारों ओर, अब तो प्रकृति की बारी आई है।

मनमानी का है ये नतीजा़, हम जो चाहे करेंगे,
हवा, पानी, अनाज़, धूप - ये भला कहाँ खतम होने हैं,
जितना मन किया उससे ज्यादा ही लेंगे,
बेकद्री में हमसे कौन भला आगे, पानी व्यर्थ में बहता है तो बहने दो न,
गँगा में गँगाजल के बदले गन्दा जल है तो क्या हुआ, जानवरों का घर जँगल भी हम ही हथियाएँगे,
धरती क्या चीज़ है, हम तो चाँद और मार्स पर भी गन्द फैलाएँगे।

कुदरत के साथ जब भी खेला इन्सॉं, अपना ही जीवन कर बैठा कम,
कल नही समझे, आज भी नहीं समझे तो क्या कभी समझेंगे हम?


Tripti Bisht

क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?



जब चेहरे की चमक, आँखों की खनक,
बिना बोले बहुत कुछ कहती है,
जब सोने सा निख़ार जीवन में,
और निराशा कोसों दूर सोती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?

जब इंतज़ार ख़तम हो काली रात,
एक भोर सुनहली देती है,
जब चमकती धूप की स्वर्णिम किरणें
बादल के छोर छू लेती हैं,
जब सागर में पानी की लहरें भी,
हर बूँद में सोना भर लेती हैं,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?

पग पग बढ़ते क़दमों से,
जब सूरज पहाड़ों को नहलाता,
फूलों पर ओस की बूंदों में,
जब सूरज का रँग चढ़ जाता,
प्रतिबिम्ब ख़ुशी का दिखता है,
जब फूलों पर भँवरा मँडराता,
घोंसले में धूप सेकती जब नन्ही चिड़िया सोती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?

जलती धूप में जब गरीब तन को,
एक चीर का टुकड़ा मिल जाता,
सिकी हुई धरती पर भी जब,
नंगे पैर दौड़ता बच्चा खिलखिलाता,
जब अभाव में भी चेहरे पर संतोष की आभा होती है,
क्या ख़ुशी सुनहरी होती है?

किसान के खेतों में जब सोने सी फ़सल होती है,
खेतों में बहे पसीने से हसरत रोज़ नए मोती पिरोती है,
सबको खिलाने वाले की थाली में जब भरपेट रोटी होती है,
सूरज सी गरिमा जीवन में जब चहुँ ओर दिखाई देती है,
हाँ चमकती हुई मुस्कानों में शायद ख़ुशी सुनहरी होती है ।


Tripti Bisht






दो पैरों की गाड़ी

जहाँ पैदल ही सारेे बच्चे जाते थे स्कूल, क्यों नैनीताल में रहने वाले कई बच्चे चलना गए हैं भूल? घर के सामने वाले पहाड़ पर था मेरा वो स्कूल, कँ...