मैला चाँद


जिंदगी सच में बहुत अजीब है,
क्या सोचो क्या हो जाता है,
कितना भी संभाल कर रख लो,
हर कदम पर कुछ न कुछ खो जाता है।

जब आसान तरीके से चल सकती है राहें,
हम मुश्किलें खुद बढ़ाते हैं,
अपनी मर्ज़ियाँ थोप कर जीने को हम,
खुशियों का जामा पहनाते हैं।

क्यों नहीं अपनी-अपनी राह चलकर
रास्ता तय हो सकता है,
क्यों हर बात पर एक स्वीकृति चाहिए,
क्यों अपनी साँसों पर भी दूसरों का पहरा लगता है।

हाँ, हैं ख़ामियाँ सब में ही,
तुम में, मुझ में, सब में,
तो उन्ही खामियों सँग क्यों नहीं जीते लोग,
कुरेद-कुरेद कर मानो तार-तार ही हो जाएगा,
ये वक़्त इतना भारी है कि कोई कुछ समझ नहीं पायेगा।

रिश्तों का आवरण तो शायद हर जगह फैला है,
जो चमक रहा सूरज की तरह बाहर से,
हर रिश्ता आज चाँद जितना ही मैला है।


Tripti Bisht






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