मेरी पहचान



स्कूल के लिए मेरी दो चोटियाँ बनाकर,
उनको घुमाकर काले रिब्बन के दो फूल बाँधती,
जब मैं क्लास में फर्स्ट आती तो शहर की मशहूर किताबों की दुकान से,
वो मुझे ढेर सारी मेरी मनपसन्द कॉमिक्स दिलवाती,
वहीं पास के एक फोटो स्टूडियो में हर साल फर्स्ट डिविज़न के कप के साथ मेरी फोटो खिंचाती,
कटे हुए कच्चे नारियल के नाव-नुमा टुकड़े जो दो से पाँच रूपए के मिलते, माँ मुझे खूब खिलाती।

मेरी हर पसन्द नापसन्द जब मैं बोल भी नहीं पाती थी तबसे जानती है,
और एक मैं हूँ जो आज भी शायद, माँ के अद्भुत प्यार को पूरा नहीं पहचानती।

जब-जब बचपन में मुझे बुखार आता,
"माँ, समोसा खिला दो बड़ा मन है, क्या पता मेरी आखरी इच्छा हो?"
ये कहकर उसके ममता भरे निश्चल मन से मैं नादानी में खेल जाती,
बाज़ार दूर होता था, भागी-भागी वो पहाड़ की चड़ाई  उतरकर और फिर चड़कर मेरे लिए समोसे लाती,
मैं खुश होकर खाती वो हँसते हुए मेरी शैतानी पर भी लाड जताती।

वो रोज़ मुझे स्कूल खत्म होने के बाद लेने आती,
कई बार स्कूल की छुट्टी के बाद रास्ते में पड़ने वाली दुकान से,
गरमा-गरम बन-मक्खन खिलाती, जो तब नहीं देखा कभी, अब महसूस होता है,
तुमने मुझे वो खुशहाल, यादगार बचपन दिया जिसकी प्यार भरी बारिश में,
मेरा वर्तमान आज भी खुद को भिगोता है।

मेरे हर जन्मदिन पर सुबह-सुबह मेरे मुँह में बरफी का टुकड़ा डालकर प्यार से उठाती थी,
सबसे छोटी थी तो उसे खूब परेशान किया मैंने पर वो फिर भी मुस्कुराती थी,
मेरी हर पी.टी.एम में माँ मेरे स्कूल आती,
बिना शब्दों में जताए उसका मुझ पर वो गर्व,
मानो दिल ही दिल में उसने मेरे सपनों की दुनिया बसाई थी।

सिर्फ मेरी नहीं, वो मेरे बचपन के दोस्तों की भी दोस्त है,
ठिठुरती ठन्ड में सगड़ के चारों ओर बैठकर चलता बातों का सिलसिला,
पैसे भी जमा होते पिज़्ज़ा पार्टी के लिए, वो भी अपना हिस्सा देती मिला,
वो हर एक को अपने बच्चे जितना प्यार देती,
बदले में सिर्फ खिलखिलाहटें समेटती।

आज भी उसका जीवन के लिए जज़्बा काबिले तारीफ है,
कैसा भी समय हो वो हिम्मत नहीं हारती,
ज़िन्दादिली की मिसाल है, सब्र का सागर है,
कैसे कर लेती हो इतना सब माँ, हर रिश्ते को तुम हो बस सँवारती।

उसके अन्दर का वो मासूम बच्चा दिख जाता है कई बार,
जो उत्साह से भरा रहता है उड़ने को जैसे बेबाक पतँग,
माँ तो सबकी बेमिसाल होती हैं, मैं तुम्हारी बनकर जन्मी, सौभाग्य है मेरा,
बस खुद तक रख लूँ तुम्हारा अनन्त प्रेम हर जनम में तो ये स्वार्थ होगा,
अगली बार किसी नए जीवन को छूना माँ,
दुनिया को और बेहतरीन बनाना, कोई तुम्हें कितना भी दुखाए,
सबको बाँटना अपना अनोखा स्नेह, वही करना जो करती आई हो,
एक नायाब तोहफा जो सिर्फ तुम लाई हो।

तुम्हारा बन पाऊँगी या नहीं, तुम मेरा अभिमान हो,
ईजा, माँ, मम्मी किसी भी नाम से पुकारूँ, माँ, तुम मेरी पहचान हो।


Tripti Bisht






 

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