ठहराव


एक ओर ठहरा हुआ जलाशय, एक ओर दौड़ती हुई नदिया,

दोनों बने तो हैं पानी ही से, फिर भला इतना अंतर क्यों?

नदी तो उन्माद उमंग से भरी है, उत्सुक है एक शिशु समान आगे बढ़ने के लिए,

खिलखिलाता है उसका पानी, हर एक बूँद में है जान।

जलाशय क्यों हैं इतना उदास, निर्जीव लगती है हर एक बूँद,

एक वृद्ध समान उसने अपनी आँखें रखी हैं मूँद, 

बहुत थका, उत्साह रहित लगता है, मानो भूल ही गया है मुस्कुराना,

शायद इसलिए क्यूंकि उसे पता है उसे कहीं नहीं जाना।

उदासी का कारण पूछा मैंने तो जलाशय बोला,

मुझसे पूछो एक ही जगह पर पड़े रहना कितना दर्द देता है,

मेरी हर एक बूँद का भविष्य जब मेरे अतीत में अपनी मंज़िल बना लेता है।


Tripti Bisht


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